
सत कोटि नमन है भारत को,भारत में बसने वाले को,
भगवान लालाइत रहते हैं,इस धरा धाम पर आने को।।
रिती निती पुनिति है ऋषियों ने, हर पावन पर्व बनाएं हैं,
बहु पुष्प खिले हर मौसम में, हरि के मन को तरसाएं है,
आभार व्यक्त मैं करता हूं,हर पर्व बनाने वाले को,
भगवान लालाइत रहते है।।
नारायण को तो आना था,निश्चर तो एक बहाना था,
हर भाव प्रेम में भक्तों के संग,पावन पर्व मनाना था,
अब नमन उन्हें है जड़ चेतन, संग रास रचाने वाले को,
भगवान लालाइत रहते हैं।।
यहां प्रेमसुधा रस मिलते हैं,ममता के हर एक आंचल में,
कालीख भी सुशोभित लगते हैं,हर एक बच्चों के आंखन्ह में,
मैं नमन करु हे मातृभूमि,तेरे आंचल अमृत वाले को,
भगवान लालाइत रहते हैं।।
भूरी भूरी भाग्य है भारत का,जहां पर्वतराज हिमालय है,
जिसके आगोश में जल और जंगल, देवों के देवालय है,
देवालय में है नमन मेरा, आरती पे मचलने वाले को,
भगवान् लालाइत रहते हैं।।
सब स्वर्ग यही है फले फूले, हर पंथ के लोगों है मिले जुले,
पुजे जाते गज गाय नांग , पिपल तुलसी तरु जल केले,
इस लिए नमन है सरयू जमुना, तट पे टहलने वाले को,
भगवान लालाइत रहते हैं।।
जह सना हुआ तन धर्म से है , औ दान दया तप भाव भरा,
ब्रम्भांड दृष्टि में एक है भारत , न्याय भक्ति से भरा पड़ा,
सत कोटि नमन है समदर्शी , सत्ता के चलाने वाले को,
भगवान लालाइत रहते हैं।।
यहां वेद पुराण शास्त्र औ सम्मत , ज्ञान के दीप जलाते हैं,
सम बिसम भरा इस जीवन में, सन्मार्ग की राह बताते हैं,
करबद्ध नमन है वेद शास्त्र के , रचना करने वाले को,
भगवान लालाइत रहते हैं।।
हैं घांस फुस भी औषधि बन , जीवन की ज्योति जलाती है,
हर वक्त हमें इस स्वारथ से , परमार्थ की डगर दिखाती है,
इस लिए नमन है स्वारथ से , परमार्थ बनाने वाले को,
भगवान लालाइत रहते हैं।।
चिड़ियों की चहक मिट्टी की महक , चंदन मे खुशबू भर्ती हैं,
नित चक्रबेणु और रघु दिलीप सा , पौरुष पैदा करती हैं,
साष्टांग नमन है मातृभूमि , प्रतिभा से भरा तेरे आंगन को,
भगवान लालाइत रहते हैं इस धरा धाम पर आने,,
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