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कांधे पे मेरे उसका हमेशा हाथ हुआ करता था,
खुद से ज्यादा वो मेरे साथ हुआ करता था,
मां उसकी कहती ये बेटा हमारा,
ज्यादा वक्त तेरे साथ बिता रहा,
मैं ना कहता कुछ भी बस मंद सा हंस देता,
चाय पीते वो उठ के साथ मेरे चल देता,
किस्सों की कतार हमारे लंबी बहुत है,
एक किस्से के एक हिस्से में वाक्या कुछ है,
वाक्या ऐसा के बाद उसके हम दोनों चुप हैं,
यूं तो मैं भी शायद खुश हूं और वो भी खुश है,
वाक्या तो हुआ पूरा मगर किस्से में छूट गया कुछ है...
...अब बस बात नहीं होती हमारी। फिर कभी शायद होगी भी नहीं। बात सेल्फ- रिस्पेक्ट की है। कभी बात हुई तो ही किस्सा पूरा हो पाएगा...
खुद से ज्यादा वो मेरे साथ हुआ करता था,
मां उसकी कहती ये बेटा हमारा,
ज्यादा वक्त तेरे साथ बिता रहा,
मैं ना कहता कुछ भी बस मंद सा हंस देता,
चाय पीते वो उठ के साथ मेरे चल देता,
किस्सों की कतार हमारे लंबी बहुत है,
एक किस्से के एक हिस्से में वाक्या कुछ है,
वाक्या ऐसा के बाद उसके हम दोनों चुप हैं,
यूं तो मैं भी शायद खुश हूं और वो भी खुश है,
वाक्या तो हुआ पूरा मगर किस्से में छूट गया कुछ है...
...अब बस बात नहीं होती हमारी। फिर कभी शायद होगी भी नहीं। बात सेल्फ- रिस्पेक्ट की है। कभी बात हुई तो ही किस्सा पूरा हो पाएगा...
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