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हमने रिश्तों का बहुत खयाल रक्खा
पर रिश्ते हमारा खयाल रख न सके
अब रिश्ते हैं भी और नही भी
बस खयाल हैं जो आते जाते रहते हैं
रिश्तों की बुनियाद न हो गर मजबूत
तो रेत के महलों की तरह ढह जाते हैं
ये रिश्ता नहीं एक दरिया है गहरा
जो डूब गए सो पार उतर जाते हैं
रिश्तों के मायने तब आते हैं समझ में
जब रिश्ते बेमायने हो जाते हैं
काश हम रिश्तों को पहले समझ पाते
जो रिश्तों के टूटने के बाद समझ पाते हैं
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