
Share0 Bookmarks 151 Reads1 Likes
खपड़ैल ,
छपरा ,
और केवाड़ छूटत है,
आधुनिकता के अंधी दौड़ में,
हमार औलाद छूटत है...!
शाम के दुआरे के चौपाल छूटत है ,
बनिया के दुकानें के उधार छूटत है ,
घर ,
रिश्ता
और परिवार टूटत है ,
आधुनिकता के अंधी दौड़ में,
हमार औलाद छूटत है...!
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments