
योगेंद्र सिंह यादव की ज़िंदगी के बारे में बताने जा रहा हूं ।
कारगिल की जंग में जो इन्होंने बहादुरी का काम किया था उसे शब्दों में प्रभु, नीलू दीदी और मेरी मां से कह के लिखवाने जा रहा हूं।
फौज में जाना इनका था शुरू से ही अरमान।
उम्र थी उस वक्त इनकी सिर्फ़ 19साल।
ऐक दिन देश की सेवा करूंगा दिल में रखा था इन्होंने ठान।
इनकी शादी को हुऐ थे अभी सिर्फ़ 2महीने।
पाकिस्तान के इरादे थे बड़े कमीने।
19गोलियां अपने शरीर के हर हिस्से पे खाई।
लेकिन मौत भी इनका कुछ ना बिगाड़ पाई।
योगेंद्र सिंह और इनके साथियों के जज्बे के कारण तिरंगे पे कोई आंच ना आई।
दुश्मनों ने पूरी दरदिंगी दिखाई।
शहीद हो चुके थे देश के कई जवान लेकिन फिर भी उन पर अंधाधुंध गोलियां चलाई।
जख्मी हुऐ थे योगेंद्र सिंह पूरी तरह
ना पैर चल रहा था।
ना ऐक हाथ चल रहा था।
ऐक हाथ से ही अपनी रायफल उठाई।
और पोजीशन बदल बदल के दुश्मनों पे गोलियां चलाई।
अपना खुद का और अपने साथियों का खून लगातार बह रहा था।
बस दिमाग़ में ऐक ही ख्याल आ रहा था।
अपने बाकी जो साथी नीचे की पहाड़ी पे थे उन्हें कैसे भी करके है बचाना।
घायल होने पर भी पुजीशन बदल बदल के दुश्मन पे गोलियां चलाना।
ग्रनेड से उनके बंकर को उड़ाना।बहती हुई नाली से नीचे जाना।
अपने ऑफिसर को दुश्मन के बारे में पूरी जानकारी बताना।
फिर जाकर टाइगर हिल पे तिरंगा लहराना
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments