दया,नीस्वार्थ,प्रेम की जो थी मूरत।
मदर टेरेसा जी की आज किस किस को याद है सूरत।
सारी ज़िन्दगी अपनी इन्होंने लोगों की सेवा में लगाई।जन्मदिन पे इनके लिखने के लिए प्रभु,नीलू दीदी और मेरी मां ने अपने बेटे सनी के हाथ में फिर आज कलम पकड़ाई।
अच्छे संस्कार इनको अपने घर से ही मिले थे।
9साल की थी मदर टेरेसा जब इनके पिता चल बसे थे।
पिता के जाने के बाद इनकी मां ने बड़े मुश्किलों भरे हालातों में पाला।
इनकी मां ने इन्हें सबके साथ बांट के खाने का और प्यार से रहने का बहुत बड़ा ज्ञान दे डाला।
इनके पूरे परिवार ने अक्सर चर्च चले जाना।
बैठ के वहा यशु मसीह की महिमा के गीत गाना।
इनकी आवाज में बहुत थी मिठास।
बैठ जाते थे लोग इनके बिल्कुल पास।
12साल की उम्र में चर्च वालों के साथ धार्मिक यात्रा पे मदर टेरेसा जी ने जाना।
वहा से आकर इनका मन बदल जाना।
सोच लिया था इन्होंने अब अपनी सारी ज़िंदगी को प्रभु और लोगों की सेवा में मैंने लगाना।
फिर कभी इन्होंने अपने घर वापिस ना जाकर डबलिन में जाकर रहने लग जाना।
1929में पहली बार हुआ था इनका भारत आना।
देख कर यहां के गरीब बच्चों का हाल इन्होंने यही का होकर रह जाना।
अपना मतलब तो
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments