
आज जिसे याद करके परिवार और उसके दोस्तों की आंखों में आसूं आ रहे।
आज प्रभु,नीलू दीदी और मेरी मां मिलकर देश के उस बहादुर बेटे विक्रम बत्रा के जन्मदिन पे सनी से देर रात को लिखवा रहे।
नाम था जिनका विक्रम बत्रा।
उठा लेते थे अपने देश के लिए अपनी जान तक का खतरा।
कारगिल की जंग में बहा दिया जिन्होंने अपने खून का एक एक कतरा।
हर लड़का नहीं बन पायेगा विक्रम बत्रा।
विक्रम और विशाल दो थे भाई।
कारगिल की जंग में शहीद हुऐ विक्रम बत्रा दोनों बहनें कभी अपने भाई को राखी ना बांध पाई।
कैसी मोहब्बत थी डिंपल चीमा की।
जिन्होंने किसी और से शादी करना तो दूर विक्रम बत्रा की विधवा बन के अपनी सारी ज़िन्दगी बिताई।
आज कल की युवा पीढ़ी से ऐसी मोहब्बत हो ना पाई।
विक्रम बत्रा ने गुरु ग्रंथ साहब जी की हजूरी में डिंपल चीमा का दुपट्टा पकड़ के लिऐ थे फेरे ।
तब विक्रम बत्रा ने कहा था (ओए सरदारनीय ले आज से हम हो गये तेरे)
23साल की उम्र में विक्रम बत्रा को पहली पोस्टिंग में ही जम्मू पड़ा था जाना।
एक बहुत बड़े आतंकवादी को मार के इन्होंने घर छुट्टी पे था आना।
लेकिन तभी पाकिस्तान ने भारतीय जवानों पे बड़ी बेदर्दी से गोलियां बरसाना।
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