
बड़े इज्जत से जिनका लिया जाता है नाम।
प्रभु, नीलू दीदी और मेरी मां ने मिलकर दिया अपने बेटे सनी को फिर से लिखने का काम।
मेरे बेटे सनी का ख़्याल रखना मां ये बात किसी ना किसी मेरे अपनों के सपने में अक्सर ये बात कहती है आकर।
आज जिनके बारे में लिखवाने जा रहे प्रभु,नीलू दीदी और मेरी मां उनका नाम है रामानंद सागर ।
वैसे तो आज ही के दिन इनका जन्म हुआ था।
लेकिन इनके द्वारा बनाई गई रामायण का एक एक एपीसोड इतिहास के पन्नों में हमेशा हमेशा के लिये दर्ज़ हुआ था।
इनकी नानी ने इन्हें गोद लिया था।
वो रामानंद सागर जी ही तो थे जिन्होंने रामायण को बनाने का मुश्किल काम किया था।
छोटी उम्र में इनकी मां का ये दुनियां छोड़ के चले जाना।
लेकिन ये दर्द सिर्फ़ वो ही समझ सकता है जिसके अपनों ने हमेशा के लिये उनसे बिछड़ जाना।
शुरुवात के दिनों में रामानंद सागर जी को गरीबी ने बहुत सताया।
अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिये रामानंद सागर जी ने चपरासी,ट्रक साफ़ करने का काम और यहां तक साबुन बेचने का काम भी करके दिखाया।
1942 में इन्हें पंजाब विश्वविद्यालय से संस्कृत व पारसी भाषा के लिए स्वर्ण पदक मिल जाना।
किसे पता एक दिन रामानंद सागर जी का टीवी और फिल्मों की दुनियां में अपना अलग मुकाम बन जाना।
1947में हुऐ देश के बंटवारे के वक्त रामानंद सागर जी अपना सब कुछ छोड़कर पाकिस्तान से भारत आये।
उस वक्त ये अपने साथ सिर्फ 5आने ही ला पाये।
आँखें, प्रेम बंधन, चरस, पैगाम व बरसात कई प्रमुख फिल्में इन्होंने बनाना।
फिर इन्होंने अपना सारा ध्यान टीवी सिनेमा की तरफ़ लगाना।
एक बार अपने बेटे से इन्होंने कहा था मैं चाहता हूं की प्रभु श्री राम के जीवन पर आधारित रामायण धारावाहिक बनाऊं।
लेकिन समझ नहीं आता मुझे मैं इतने पैसे कहा से लाऊं।
फिर इन्होंने अपने दोस्तों,और रिश्त
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