
आज ही के दिन जिन्होंने पिया था शहादत का जाम।
आज बताऊंगा बंदा सिंह बहादुर के जीवन की दास्तान।
पहले इनका नाम था मादो दास।
शिकार करने का था इन्हें शौंक बड़ा खास।
ऐक बार शिकार करते हुऐ ऐक गर्भवती हिरणी का इनके हाथों से तड़प तड़प के मरना।
इस बात से ये इतने टूट चुके थे सोच लिया था इन्होंने फिर कभी मासूम जानवरों का शिकार ना करना।
सब कुछ छोड़ के जंगल में करने लगे ये तपस्या।
उस वक्त मुगल कर रहे थे हर धर्म पे हद से ज्यादा अत्याचार ये बात बन गई थी सबसे बड़ी समस्या।
गुरु गोबिंद सिंह जी का इनके आश्रम में जाना।
इनकी गद्दी पे जाके आराम से बैठ जाना।
ये बात मादो दास से ना हुई बरदाश।
अपनी हर शक्ति का किया था इन्होंने गुरु गोबिंद जी पर प्रयास।
गुरु गोबिंद जी की शक्ति से था उस वक्त मादो दास था अनजान।
गुरु गोबिंद सिंह को जब इन्होंने देखा तब ये समझ गये थे ये तो है सबके तारण हार।
तब गुरु गोबिंद सिंह जी ने इन्हें समझाया।
मादो दास से बंदा सिंह बहादुर बनाया।
गुरु गोबिंद सिंह जी ने कहा था अपने अंदर के इंसान को पहचान।
मुगलों के जुल्मों का अब कर दो तुम नाश।
जब इन्होंने सुना के कैसे वज़ीर खान ने छोटे साहबजादो को दीवार में चिनवाया।
ये सुनके ही बंदा सिंह बहादुर जी को
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