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मरीज़ ए इश्क हूं तेरा मेरे ख़्वाजा मुईनुद्दीन।
ज़हे बीमार रहने दे मेरे ख़्वाजा मुईनुद्दीन।
हुसैनी खून है तुझमे तू है आल ए शहे बतहा
जमाना फैज़ पाता है तेरे दर से मुईनुद्दीन।
दिए ईमान का दौलत जो है आला ज़माने में
हैं नव्वे लाख को मोमिन किए ख़्वाजा मुईनुद्दीन।
इलाका है जो काफिर का वहां पे जाओ तबलीगी
नबी के दीन का तबलीग किए जैसे मुईनुद्दीन।
किए रुसवा ज़माने के यजीदों को सुनो 'अरमान'
बुलाके कासे में दरिया मेरे ख़्वाजा मुईनुद्दीन।
मरीज़ ए इश्क हूं तेरा मेरे ख़्वाजा मुईनुद्दीन।
हमे मेराज हो तेरा मेरे ख़्वाजा मुईनुद्दीन।
Poet: Arman Habib Islampuri
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