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कभी मेरा दिल कभी मेरी धड़कन
कह के पुकारे थे जां भी कभी।
तुम जो कहो तो दिखला दूं मैं
खत में हुई थी जो बातें कभी।
मौत पे मौत कांधे पे कांधे सजे,
मिटती हैं नस्लें जो मिटती रहे।
कैसे खोलोगे मुंह कैसे बोलोगे तुम,
है मुंह में तुम्हारे निवाले अभी।
दोस्त तो दोस्त दुश्मन अगर,
जो आए कभी मेरी दहलीज पर।
अरमान! कदमपोश कर दुंगा मैं,
अजी! तोड़ कर चांद तारे सभी।
✍एम ए हबीब इस्लामपुरी
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