
कहानी:
मेरी खिड़की से चार खिड़कियां और दिखती हैं
कभी बहोत शोर या चुप रहती हैं।
कुछ दिन खिड़की पे नहीं आता तो याद करती हैं,तुम्हारी और मेरी कहानी के बारे में पूछती रहती हैं,
तुम जो अब साथ बैठती नहीं हो तो सवालों का पहाड़ खड़ा करती हैं।
मना करो तो घरों की रोशनी बंद कर देती है, ना मना करो तो चिल्ला चिल्ला के मेरे घर के शीशे तोड़ देती हैं।
इजाज़त हो तो झूठ बोल दूँ,
तुम्हारे जैसी कठपुतली बगल में रख लूँ,
उनके मुँह बंद कर दूँ, अपना दिल बहला लूँ।
तुम जवाब न देना मगर मैं सवाल पूछ लूँ,
हँसना मत बस मैं चुट्कुले सुना दूँ।
दो बाल जो परेशान कर रहे हैं, उनको कानों के पीछे कर दूँ।
मज़ाक में ही सही समुन्दर में कूद जाऊं,
तैरना नहीं आता मगर तुम्हे नौका समझ लूँ।
तैरते तैरते थक जाऊं तो तुम्हे पानी समझ लूँ,
बिना गहराई ढूंढे ततुझमे समा जाऊं।
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