
लता दीदी को शब्द सुमन अर्पित करते हुए~
तुम्हारी लोरी
सुनकर
शैशव जिया
नन्हें मुन्ने थे तो
मुट्ठी में तुम्हारे गीत
लिए डोलते रहे,
शहीदों की
क़ुरबानी
याद दिलायी तो
बरबस आंसू छलक पड़े,
तुम्हारे गीतों की मादकता में
यौवन स्वप्न सा गुज़र गया।
लगता था
ज़िन्दगी और कुछ
भी नहीं तेरी मेरी कहानी के सिवा,
पिता बने तो राम को
ठुमकते हुए पैंजनिया बजाते
तुम्हारे गानों में महसूस किया,
अब उन गानों में जीवन
की उन्हीं मधुर स्मृतियों
को जी रहे थे
कि अचानक
आप चुप हो गयीं
जैसे कोई स्वप्न ही छिन्न भिन्न हो गया!
तुम्हारे गानों में
कई पीढियों ने अपने
सुख, दुख जिये
और ये भी समझा
कि कैसे एक व्यक्ति
इतना बड़ा हो सकता है
कि वह अपनी आवाज़ से
करोड़ों करोड़
लोगों को सदियों तक
प्रेरित कर सकता है,
उनकी श्रद्धा का पात्र हो सकता है
राष्ट्र का गौरव बन सकता है।
सच है कुछ आवाज़ें कभी नहीं मरतीं।
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