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माह-ए-फरेब, फरवरी का ख्याल रखना,
हो सके जितना दिल को संभाल रखना,
धड़कने बसंत पर धड़केगी,
दिल भी सर्द बयार पर मचलेगा,
क्षितिज पर ढलता सूरज,
मस्तानी शाम की ओर इशारा करेगा,
दरख़्त की शाखें साज मिलाएंगी,
कोयल भी गान अलग-सा गाएगी,
सुबह की एक साजिश शामिल होगी, चाय पर,
नए जमाने की चाह पर,
फिर चाह से चाहत,
एक आहट, आह! तक ले जाएगी,
प्यार की गली, फरवरी,
ना वो पाएगी,
होगा खालीपन तो शायरी ' इन्द्राज' की याद आएगी,
"लबों पर जाम और धुएं का गुब्बार,
आह! मैं भी फरेबी, फरवरी का शिकार"
~इन्द्राज योगी
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