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मुफ़लिसी में गुजर रही है....

Indraj YogiIndraj Yogi November 9, 2021
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मुफ़लिसी में गुजर रही है,
जिंदगी इस क़दर,
ना क़दर को इज्जत है,
ना चेहरे पर लज्जत है,

अब झिझकता हूं,
शक्ल को आइना दिखाने से,
और बचता हूं,
झुकी नजरो को,
उपर उठाने से,

दरवेजी क्या है,
एक दर है,
जर्जर हालत-सी,
मटमैला-सा आकाश लिए,
काले आँगन की,

आँगन,
आकार का छोटा है,
ना खुशियां समाती है,
ना कोड़ियां खनकती है,

अब ना बोलता हूं,
ना सुनता हूं,
ना कहता हूं,
अब बस मैं,
इस सब बीच सिर्फ,
सोचता हूं,

कि दर टोकती,
दर लम्हा-लम्हा दरकते,
जीवन को,
टूटे से किवाड़,
चौखट के,
हवा से हिल-ढुल,
या कहूं,
मिलकर उससे,
हाय! हाय!
की ध्वनि,
से दुत्कारती है,<

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