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खफा है कुछ खबर नहीं,
खामोश खाम सनम मेरा,
खुमार चढ़ा ख्वाहिशों का,
खरीद-फरोख्त खास जैसा,
गुजारी हमने जिंदगी खस्ताहाल,
गुमगश्ता है पर मेरा गुजीदा,
गोया है कि लबों पर,
मेरी फ़ज़ीहत है इश्क में चार दिन की चांदनी,
और बस हमारी कितनी हैसियत है,
जनाब! जाजिब था कमबख्त,
आंखों में जमाल घोल,
दिल में उतर गया,
जात न जानी, जानी की,
जलील कर गया जियादा ही,
डगर में है डाबर, की डूब मरे,
तजुर्बा जीने का,
तोहफे में ले गया जियादा ही....
~इन्द्राज योगी
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