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चौराहों पर पड़े खोल गवाह है अपराध के,
जो उसूल-ए-तहकीकात में पकड़े जाते हैं,
और कहते हैं कि 'माय बाप!'
हमारा अपराध में सहयोग यही तक था।
हमने ना आत्मा भेदी, न शरीर,
सिर्फ नुकसान पहुंचाने वाले उस सामान को सहेजा,
जिसे लोग 'गोली' कहते हैं।
किसी सरफिरे-सनकी ने चोरी-छिपे खरीदा,
और बर्बादी सहेजने के बंदूक नामक वस्तु में गिन कर रख दिया,
लेकिन इन सबके बीच खोल की खाल तो कब की उधड़ चुकी है,
सजायाफ्ता मैं खोल अपराध की दुनिया,
और बर्बादी के विश्व का पहला कमजोर अपराधी हूं,
जो सबसे पहले धरा जाता हूं,
वारदात के स्थान पर मौका-मुआयना पर,
सिर्फ हम दो ही गवाह सदा मौजूद रहते हैं,
एक मैं खोल, दूसरा मृतक,
जो मानव के अस्तित्व को सिद्ध करने के,
उद्देश्य से बनाई गई गोली खाकर ढेर है।
~इन्द्राज योगी
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