
Share0 Bookmarks 65 Reads0 Likes
अंकुर बन सिंचित हो जाओ,
संकल्प की वीर भौम पर,
शीश उठाकर अंकुरित हो जाओ,
ह्रदय में उपजी विशाल वेदना पर,
सहों! सहनीय-सी प्रवृति तुम्हारी,
कितनी ही पीड़ाएं समेटे प्रकृति हमारी,
ऊंचाई से उठो, बनो तृण गिरि का,
बरसो बन बादल शिख गिरि का,
पार करो बाधा निज जीवन,
सहसा! उपजो बन वृक्ष कल्प का,
अखण्ड कौन? खण्डित ब्रह्माण्ड समूचा,
सृष्टि स्वयं नव निर्माण का अजूबा,
अनगिनत गलतियों को दे क्षमादान,
है जीवन का यही समाधान,
अंकुर बन सिंचित हो जाओ,
संकल्प की वीर भौम पर....
~इन्द्राज योगी
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments