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ऊंघते अनमने से मन से,
झुंझला, खिन्नता से भरे मन से,
देखा है आज मैंने,
क्षणिक उठा नभभर दृष्टि,
उजले-काले, छटतें बनते,
बिना पग के पयोध चलते,
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ऊंघते अनमने से मन से,
झुंझला, खिन्नता से भरे मन से,
देखा है आज मैंने,
क्षणिक उठा नभभर दृष्टि,
उजले-काले, छटतें बनते,
बिना पग के पयोध चलते,
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