अफ़वाह's image
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मानवता खोएं,

इंसानों की बस्ती का,

मैं दरिद्र दरिंदा हूं,

रक्त टपके जिह्वा से मेरी,

मैं खूनी परिंदा हूं,


मैने खाएं हिंसा-फसाद,

नोंच-नोंच,

गली-मुहल्लों से,

और रक्त पिया,

बेजान निर्दोष लाशों से,

खोज-खोज,

पाया मैने ये प्रसाद,

असुरों के प्रासादों से,


एक अंधेरी रात को,

ताक-घात लगाएं,

सोच रहा मैं ये मर्म,

दूध के दांत तक न टूटे,

मुख पर कांति के फूल भी न फूटे,

उतावला गरल, मचाने को कहर,

किसने भरा? नन्हे कपोलों में जहर,



शहर-शहर बर्बाद है,

वीराने आबाद है,

रोशनी की लौ हरते,

आंगन की अंगड़ाई में,

अब विषैले पत्ते झड़ते,


चीखती बिल्लियों की लड़ाई,

रोते श्वानों की गुर्राहट,

घुग्घू की आवाजें,

फैली एक अफवाह पर,

भयभीत मुझे कर देते है,

धैर्य के कच्चे, बच्चे,

उड़ा देते है गर्दन,

उड़ती-उड़ती खबर पर...

~इन्द्राज योगी

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