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कितनी बेचैनी थी उन आँखोँ में,
न जाने कितना कुछ सहती थीं..
बड़बोली- बेबाक सी,
न जाने क्या-क्या कहती थीं..?
न समझती थीं, न समझा पाती थी खुद को,
न जाने क्या ढूंढा करती थीं..?
आँखों में सितारे चमकते थे,
उसकी निगाहों में जैसे कोई चाँद था..
पगलाई सी रहती थीं वो,
क्या अमावस छटने का इंतज़ार किया करती थी..?
कितनी ही अपन
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