
0 Bookmarks 52 Reads0 Likes
कितनी बेचैनी थी उन आँखोँ में,
न जाने कितना कुछ सहती थीं..
बड़बोली- बेबाक सी,
न जाने क्या-क्या कहती थीं..?
न समझती थीं, न समझा पाती थी खुद को,
न जाने क्या ढूंढा करती थीं..?
आँखों में सितारे चमकते थे,
उसकी निगाहों में जैसे कोई चाँद था..
पगलाई सी रहती थीं वो,
क्या अमावस छटने का इंतज़ार किया करती थी..?
कितनी ही अपनी और पराई निगाहों से घिरा था उसका मन,
पर वो तो बस आँखें मूंद शायद किसी अपने का इंतज़ार किया करती थीं...
खुदा करे उसके ख़्वाबों को पलकों के पंख लग जाएं,
लफ़्ज़ों से वो कुछ कहे-न-कहे,
बस ये आँखें कुछ बयाँ कर जाएं..
इस कशमकश में बैठे हैं,
ये निगाहें कहीं भ्रम न बन जाएं..
उलझन में है दिल,
अब ठहरे या कूच कर जाएं..?
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments