Share0 Bookmarks 30989 Reads0 Likes
नई सी नाव आज तैयार थी...दौड़ में शामिल होना था...बस कोशिश में आगे थी.. जोड़ तोड़ से छोटी सी खुद की नजरों में ही ठीक लग रही थी...गांव के तालाब की रौनक थी,प्यार से धन्नो बुलाता था,क्षितिज उसे...क्षितिज के कहने पे तो दौड़ पे आई है..कहता है जीत के लिए तुम ही बनी हो..क्या करती आना पड़ा..क्षितिज की बातें दौड़ने को कहती हैं..
क्षितिज साथ साथ चल रहा था,मैं तो ना जाने क्या क्या सोचती बड़ी बड़ी नाव..मुझे देखकर मूह बनाते...लकड़ी के नई मशीनें,क्षितिज कहता था इनमे से कुछ समंदर तैर आई हैं...मैं तो अपने तालाब के 10 चक्कर में हि थक जाती हूं..दौड़ शुरू होने में अभी वक्त था,क्षितिज मुझे तैयार करने में लगा था...घंटी बजी लाइन में बुलाया गया,मैं क्षितिज को देखती रही...असहज सी इन बड़ी नावों के बीच..मैंने आंख बंद कर लिया...3.2.1 आंख खोलकर जोर से मैं भी चल पड़ी....100km की दौड़ है सब अपनी रणनीति से आगे बढ़ रहे थे,मुझे दिनभर अपने तालाब में तैरना अच्छा लगता था,आज इन बड़े नावों के बीच असहज महसूस करती हूं....अभी कुछ दूर हि तो चले हैं..झील आज मैंने पहली बार देखा है और क्षितिज के कहने पे चली आई हूं..कितने तेज़ हैं ये नाव...इनकी गति,इनके आत्मविश्वास से सह
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments