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तुझे देख कर जान पाया
कि कैसे सबकुछ अपने आप हो जाता है
कैसे सुबह से शाम हो जाती है
शाम कैसे रात की शक्ल ले लेती है।
तुझे देखकर जान पाया
कि कैसे बदल रहा होता है मौसम
इंद्रधनुष, कैसे निकल आता है आसमान में
कैसे खिल जाते हैं फूल
कैसे फैल जाती है ख़ुशबू।
तुझे सोचा तो जान पाया
कि कैसे शुरू होता है सफर
कैसे बिना रुके, बिना थके
सफर को मंज़िल मिल जाती है
तुझे छुआ तो जान पाया
क्या होता है स्पर्श
आकर्षण के नियम
मिलने की ख़ुशी, खोने का ग़म
तुझे पाया तो जान पाया
क्या होता है पाना, क्या होता है खोना
जान पाया कि
सबकुछ कितना आसान हो जाता है।
साहिल मिश्रा
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