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फटे ज़ेब में आजकल
ख़ुशियां तलाश रहा हूँ
मेरे हाँथ अब इनमें
सिक्के नहीं ढूंढते
न ही ढूंढते हैं चुराए हुए
आम, इमली और मिठाई
ये ढूंढते हैं ख़ुशी जैसा ही कुछ
जो नहीं मिलती किसी डिजिटल वॉलेट में
ना ही बंद पड़ी आलमारी के लॉकर में
बहुत सा कुछ तो है
जो इसमें बरसों पहले खो गया
ऊपर से बिना बताए!
अब ये बहुत कुछ
कोई सुखद एहसास था
कोई कविता या कोई तस्वीर
या तुम्हारे साथ बिताए हुए वो दिन
मुझे नहीं मालूम।
साहिल मिश्रा
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