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देख अस्मत ये जहां नज़रों के सामने लूट रहा
कहने को तो माँ है कहता फिर तू क्यूँ खामोश खड़ा
रंग दामन का है उसका देख कैसा मैला हुआ
सुन पुकार उसकी जो खामोश हो तुझे पुकार रहा
देख अस्मत ये जहां नज़रों के सामने लूट रहा
कहने को तो माँ है कहता फिर तू क्यूँ खामोश खड़ा
कब तक नज़रों से नज़रें चुरा यूही चला जाएगा
शहीद होने का जज्बा नहीं जिसमे वो एक दिन यूही खर्च हो जाएगा
मौत की दस्तक है पक्की, फिर तू क्यूँ डर रहा
जिसके जिगर से आवाज न निकले वो बूत बना रह जाएगा
देख ये जीवन रणं आज तुझे पुकार रहा
कहने को तो माँ है कहता फिर तू क्यूँ खामोश खड़ा
आबरू की बात करते है बहुत ज्ञानी यहाँ, देश ये वही है औरत हुई सती जहां
आँख उठा के देख ये आज भी वैसा ही है
सती का प्रचलन नहीं तो फांसी भी कहा पापी को है
कहते है सभी की वक़्त है बदल गया
पर ज़रा गौर से देख किताब भल्ले बदल गई पर किस्सा वही रह गया
सब नज़र अंदाज कर इंसान शमसानो में जी रहा
कहने को तो माँ है कहता फिर तू क्यूँ खामोश खड़ा
वो आवाज किसी काम की नहीं जो कानो तक न पहुंचे
वो आग किसी काम की नहीं जो रौशनी ना फैलाये
वो उम्र बेकार है जो यूही गुज़र जाए
वो नस्ल किसी काम की नहीं जो नाय इतिहास न रच पाए
नपुंसक बने संसार में हर कोई बस बाते कर रहा
कहने को तो माँ है कहता फिर तू क्यूँ खामोश खड़ा
लहू का लाल रंग आँखों में उतरना चाहिए
देख हालत देश की ये शीना फटना चाहिए
आवाज नहीं तो गुहार ही सही पर शोर होना चाहिए
आग लगाने की ज़रूरत न हो पर ज़ज़्बा होना चाहिए
खामोश जीने से तो अच्छा कुछ कर गुज़ारना चाहिए
आईने में देख खुद को, कुछ शर्म करना चाहिए
देख वक़्त आज लहू है तेरा मांग रहा, जो रगो में रह कर भी सैलाब ना लाये उसे गटर में बहना चाहिए
बुत बना संसार में हर कोई यूही जी रहा
कहने को तो माँ है कहता फिर तू क्यूँ खामोश खड़ा
शरीर बस रह गया, आत्मा का कोई वजूद नहीं
आबरू का दामन थाम के गैरत यहाँ चलती नहीं
कीड़ो की तरह रेंगता है इंसान, किसी में भी रीढ़ की हड्डी नहीं
बुझ चुकी है आग अंदर की सब की चिताओं में
इंसानो के इस जहां में अब इंसान ही इंसान को पहचानता नहीं
देख तमाशा दुनिया का ये खेल कैसा चल रहा
नंगे खड़े है सारे, फिर भी हर कोई झूठी शान का दम भड़ रहा
देख अस्मत ये जहां नज़रों के सामने लूट रहा
कहने को तो माँ है कहता फिर तू क्यूँ खामोश खड़ा
कहने को तो माँ है कहता फिर तू क्यूँ खामोश खड़ा
रंग दामन का है उसका देख कैसा मैला हुआ
सुन पुकार उसकी जो खामोश हो तुझे पुकार रहा
देख अस्मत ये जहां नज़रों के सामने लूट रहा
कहने को तो माँ है कहता फिर तू क्यूँ खामोश खड़ा
कब तक नज़रों से नज़रें चुरा यूही चला जाएगा
शहीद होने का जज्बा नहीं जिसमे वो एक दिन यूही खर्च हो जाएगा
मौत की दस्तक है पक्की, फिर तू क्यूँ डर रहा
जिसके जिगर से आवाज न निकले वो बूत बना रह जाएगा
देख ये जीवन रणं आज तुझे पुकार रहा
कहने को तो माँ है कहता फिर तू क्यूँ खामोश खड़ा
आबरू की बात करते है बहुत ज्ञानी यहाँ, देश ये वही है औरत हुई सती जहां
आँख उठा के देख ये आज भी वैसा ही है
सती का प्रचलन नहीं तो फांसी भी कहा पापी को है
कहते है सभी की वक़्त है बदल गया
पर ज़रा गौर से देख किताब भल्ले बदल गई पर किस्सा वही रह गया
सब नज़र अंदाज कर इंसान शमसानो में जी रहा
कहने को तो माँ है कहता फिर तू क्यूँ खामोश खड़ा
वो आवाज किसी काम की नहीं जो कानो तक न पहुंचे
वो आग किसी काम की नहीं जो रौशनी ना फैलाये
वो उम्र बेकार है जो यूही गुज़र जाए
वो नस्ल किसी काम की नहीं जो नाय इतिहास न रच पाए
नपुंसक बने संसार में हर कोई बस बाते कर रहा
कहने को तो माँ है कहता फिर तू क्यूँ खामोश खड़ा
लहू का लाल रंग आँखों में उतरना चाहिए
देख हालत देश की ये शीना फटना चाहिए
आवाज नहीं तो गुहार ही सही पर शोर होना चाहिए
आग लगाने की ज़रूरत न हो पर ज़ज़्बा होना चाहिए
खामोश जीने से तो अच्छा कुछ कर गुज़ारना चाहिए
आईने में देख खुद को, कुछ शर्म करना चाहिए
देख वक़्त आज लहू है तेरा मांग रहा, जो रगो में रह कर भी सैलाब ना लाये उसे गटर में बहना चाहिए
बुत बना संसार में हर कोई यूही जी रहा
कहने को तो माँ है कहता फिर तू क्यूँ खामोश खड़ा
शरीर बस रह गया, आत्मा का कोई वजूद नहीं
आबरू का दामन थाम के गैरत यहाँ चलती नहीं
कीड़ो की तरह रेंगता है इंसान, किसी में भी रीढ़ की हड्डी नहीं
बुझ चुकी है आग अंदर की सब की चिताओं में
इंसानो के इस जहां में अब इंसान ही इंसान को पहचानता नहीं
देख तमाशा दुनिया का ये खेल कैसा चल रहा
नंगे खड़े है सारे, फिर भी हर कोई झूठी शान का दम भड़ रहा
देख अस्मत ये जहां नज़रों के सामने लूट रहा
कहने को तो माँ है कहता फिर तू क्यूँ खामोश खड़ा
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