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सारे मुल्क़ों को नाज था
अपने अपने परमाणु पर
कायनात बेबस हो गई
एक छोटे से कीटाणु पर
तुं तुच्छ-ओ-अदना कण
साम्राज्य फैलाने चला तुं
पृथ्वी से परे दूजे ग्रह
चंद्र-परिक्रमा परि-भ्रमण
प्रभुजी ने एक ही कीटाणु से
भ्रम तेरा किया रमण-भ्रमण
सज
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