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खिड़की पर खड़े तक रहे थे हम
उदास मन से वै ख़ाली आसमान
देख कर मुज़े आज़ाद-सा पंछी
आया ✈️ कहीं से समेटे उड़ान
सामने लगे नीम के पेड़ पर बेठ
कह रहाँ हो जैसे अनकही ज़बान
बोला हस के कैसे कटती क़ैद में
जो हमपे बीते क़ैदमें टटोलो ज़हन
करवाते हो करतबों के खेल हम से
तुम सर्कसमे
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