
बंदों की बद-आमाली से
कुदरत का कहेर बरसा हैं
आज कोरोना के नाम पर
सब लोग मज़बूर हो गए हैं
अपने ही घरों में केद होकर
रह गए कोरोना के नाम पर
क़ब्रिस्तान-ओ-स्मशान-से
बने हैं रास्ते हर गाँव हर शहर
बदहाली हैं कोरोना के नाम पर
चंद माह पहले कटते मरते थे
इन्सान सिर्फ़ जाति के नाम पर
आज केंद हैं कोरोना के नाम पर
देखा-अनदेखा सहा प्रभु ने एक
हद तक आज उसने दिखाया रुप
असली अपना कोरोना के नाम पर
दिखाई तो हरगिज़ नही देता हैं
नि:संदेह वो देखता सुनता सब हैं
बताया उसने क़द कोरोना के नाम पर
चाबूक़ उसकी दिखती कभी नही
पर पहुँच उसकी बेशक अपरंपार हैं
तुच्छ बने बंदे हैं कोरोना के नाम पर
वक़्त रहते सँभल जाए अज़ीज़ी व
मिन्नत-ओ-माफ़ी-साफ़ी ही हल हैं
सच्चे दिल से झुकें कोरोना के नाम पर
वह बंदा-नवाज़ परवरदिगार रहम
दिल हैं बख्श देगा जरुर ख़ता हमारी
दिल से माँगे दुँआ कोरोना के नाम पर
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