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रश्क है मुझे
तुम्हारे इर्द गिर्द की
बेजान चीजों से भी
वो अंगूठी
जिसने तुम्हारी एक उँगली को
जकड़ के रखा है
तुम्हारे रगों की हरकतों का
एहसास है इसे
रश्क है मुझे
उस पश्मीने की चादर से
जो तुमसे लिपटी रहती है
तुम्हारी साँसों की गरमाहट
घुलती है इसके धागों में
रश्क है मुझे
तुम्हारी कलाई पर
उस केसरिया कलाबे से
बंधा हुआ तुमसे
जैसे चंदन की शाख़ पर नाग
रश्क है मुझे
सर्द हवाओं से
जो तुमको छू कर
गुजरती है हर रोज़
रश्क है मुझे<
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