
नारी के नारीत्व पर आक्षेप करना बहुत सरल है
मगर बात एक सच कहती हूँ जो कि घातक एक गरल है
है यह बात कोई नयी नहीं कि नारी को अबला बना के प्रस्तुत किया पुरुषों नें
रख कर दांव पर सम्मान नारी का
द्यूत किया पुरुषों नें
छाती पीट कर छाती ढकते
जब द्रुपद पुत्री चिल्लाई थी
तब भी मर्दों तनिक भी लज्जा तुमको तो नहीं आयी थी
तुमने ही तो अम्बपाली को नगरवधु बनाया था
तब उसने भी अपनी काली नियति को अपनाया था
छुप कर के जब छद्मवेश में देवराज जी आये थीं
हुई कलंकिनी अहिल्या केवल
इंद्र देव थें तब भी और देव ही कहलाये थें
गयी थी जानकी आर्य के पीछे वन में साथ निभाने को
अग्नि परीक्षा दी उसने अपना सतीत्व दिखलाने को
इतने पर भी क्या चाहते हो
नारी अबला ही बनी रहे?
सहती रहे अपमान मूक हो
मुख से कुछ भी नहीं कहे?
मत ललकारो नारी के धैर्य और ममता को
धैर्य का बांध जो टूट गया
तो सह न सकोगे क्षमता को
शोषण के विरुद्ध अगर नारी मन में ठानेगी
रक्त से फिर दुराचारी के केश धो के ही मानेगी
- हृषीता 'दिवाकर'
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