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ख्वाब में भी तेरे हम ही आएंगे
ये सोच के दिल को बहलाने में क्या बुराई है!
जहाँ भर की नज़रों से बचते बचाते-
नज़रें मिलाने में क्या बुराई है!
इश्क में हज़ारों फ़ना हुए हैं
और होते रहेंगे पता है हमें,
अना आपकी जो सलामत रहे-
तो खंजर चलाने में क्या बुराई है!
जायज़ है अगर इश्क़ में हर फरेब तो-
यूँ मिलने के बहाने में क्या बुराई है!
दामन बेदाग है मेरा भी और नीयत साफ है तेरी भी...
इश्क़ हुआ है फिर भी बदनाम अगर-
न जाने ज़माने में क्या बुराई है!!!
© हृषीता दिवाकर
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