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मेरा देश गरीब चलाता है
अलग-अलग लिबास में
अपना फर्ज निभाता है
कभी खेत का किसान
कभी शहर का मजदूर बन जाता है
मेरा देश गरीब चलाता है ।।
सोता है खुद झुग्गी मे
लोगो का महल बनाता है
खुद रोशनी से वंचित र
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