Share0 Bookmarks 31331 Reads0 Likes
एक मुद्दत गुजर गयी, अपनी पहचान हुये।
इतनी दिल-आज़ारी, की हम लहूलुहान हुये।
अश्कों का दर्द मेरे, तुम कभी समझ न पाये।
हम तेरी आह तक से, खासे परेशान हुये।
पलकें बिछाते आये हम, तेरे क़दमों के नीचे।
एक नज़र जो तूने देखा, भारी अहसान हुये।
कुछ ऐसे रखते हो तुम, हमें अपने साथ।
बिन जज्बात के जैसे, हम कोई सामान हुये।
तय था की होगी, बराबर की हिस्सेदारी।
खुशियाँ देकर ग़म रख
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments