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अंदर से ख़ाली और खोखले लोग, 

बाहर से भरे हुए होते हैं,

अभिमान से, ईर्ष्या से, दंभ से, ज्ञान के भ्रम से,

औरों के जीवन को ताश के पत्तों सा समझने वाले ये लोग,

अपने पैरों तले कुचल देतें हैं, रौंद देते हैं, औरों के स्वाभिमान को,

औरों की मेहनत को अपनी धारणाओं के कठगरे में तोलने वाले ये,

खुद को अधिकारी समझते हैं, चुनने का, कौन लायक़ है, कौन नहीं,

सिर्फ़ अपने आप में उलझे ये आधे-अधूरे, लोग,

कभी नहीं देख पाते अपनी मान्यताओं के उस पार,

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