
मध्यम वर्ग की लड़कियाँ,
सिर्फ़, लड़कियाँ नहीं हो पाती,
उनको पहले होना पड़ता है,
बहन, बेटी और कभी-कभी माँ भी,
उनके हिस्से में नहीं आते सुंदर फ़ुल भरे, आरामदेह रास्तें,
उनको अपने और अपनों के हिस्से के काँटे खाने पड़ते हैं,
उन्हें बने बनाये महल नहीं मिल जाते,
इन्हें सारे पहाड़ ख़ुद तोड़ने पड़ते हैं, सारे दरियाँ को ख़ुद पार करना पड़ता है,
उनके सपनों में, सफ़ेद घोड़ा और राजकुमार नहीं आते,
उनके सपनें, उनके जागने की वजह बन जातें हैं,
इन्हें दहेज में दौलत या मिल्कियत नहीं मिलती,
उम्मीदें, आशाएँ और जवाबदेही मिलती है,
इन्होंने बचपन में अप्सराओं की कथाएँ नहीं सुनी होती,
अपितु अपनी माँ के संघर्ष की निशानियाँ देखी होती हैं,
अपने आत्मविश्वास और अदम्य साहस से,
जीवन की सारी परीक्षाओं के सामने ये चट्टान सी खड़ी रहती हैं,
सारी, निराशाएँ, हार और मुश्किलों को पार कर,
ये मेहनत के आकाश पर सूरज सी चमकती हैं,
और सब अंधेरों और आँधियों को ध्वस्त कर,
ये, जीत लाती हैं अपने हिस्से का प्रकाश,
अपने त्याग, कर्तव्यनिष्ठा और दृढ़ता से,
ये भेद लेती है सारे लक्ष्यों को जैसे अर्जुन ने भेदी थी मछली की आँख,
ये छली जाती है, तजी जाती है, तोड़ी जाती है,
पर पराजित नहीं हो पाती,
माँ की हिम्मत और पिता का गौरव बनी रहने वाली ये,
अंत में, असीम प्रेम और आस्था का स्रोत हो जाती हैं,
उन मध्यम वर्गीय लड़कियों के लिए,
जो कुछ बनना चाहती हैं,
कुछ जितना चाहती हैं,
जिनके डर नहीं,
होसलें बड़े हैं,
जिनके घर नहीं,
सपने बड़े है…!!!
-हिना अग्रवाल
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