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रूप सलोना श्याम का, मनमोहन चितचोर।
कहतीं ब्रज की गोपियाँ, नटखट माखन चोर।।
निरख रही माँ जसुमति, झूमा गोकुल धाम।
मीरा के मन में बसे, बंसीधर घनश्याम।।
सुध-बुध खोई राधिका, सुन मुरली की तान।
अर्जुन की आँखें खुल
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