
विस्तार करो विस्तार से
उस इतिहास के साक्षात्कार से
मां सिंधु के कगार से
और सिंधु घाटी के उन विचार से ।।
पनपी जो सभ्यता उन घाटों में
जो खुद विकास का दृष्टांत है
क्या कमी तलाशे उस सभ्यता में
जिसका इतिहास खुद सूर्य सा विक्रांत है
जल , जंगल दर्शाना उसके लिए जीवन का अभिमान है
गौरविंत आदिवासी है और आदिवासियत उसका नाम है ।।
क्या खोजोगे तुम वेद पुराणों में
खोज सको तो खोज लो उन वृक्षो के तुम प्राणों में
क्या ढूंढोगे तुम पुरातत्व के उन पन्नों में
मिल जायेगा उत्तर तुम्हे अपने ही भीतर उन प्रश्नों में
हर पत्र वृक्ष का इतिहास कण - कण का बखानता है
पावन मां धरा पर वो अस्तित्व वनवासी का दर्शाता है
शौर्य का उदाहरण वो वीरता की मशाल है
वीर आदिवासी है और अदिवासियत उसका नाम है ।।
प्रकृति का पुत्र वो प्रकृति का गीत है
हर प्रदेश - देश में वो एकपन का मीत है
किंतु आंख ऊंची करके जो जंगलों को हरे
रक्षा के लिए सदैव आदिवासी ही खड़े
प्रकृति का पुत्र वो धूल मिट्टी जिसका साज है
जीना मरना सभ्यता पे कुछ ऐसा ही मिजाज़ है
हर आवाज जुल्म की झुका दे कुछ ऐसी उसका आगाज है,
नाम बिरसा मुंडा और लक्ष्य अबुआ राज है
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