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हे जगत जगदीश्वर्
हैं संग जिसके नंदीश्वर
मस्तक चंदा विराजे
कंठ सर्पों की माला साजे
जटाओं बीच गंगा बहती
कहलाते हैं भभूतधारी
बगल में शिव के उमा दमके
रूप दोनों का खूब चमके
एक ओर गणपति विराजे
दूज
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