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प्रकृतिऔर जीवन !!
जीवन प्रकृति से मेल खाता है।
इसमें भी दुःख का पतझड़ और सुख का बसंत आता है।।
कभी तपता है, जीवन बैसाख से परेशानी में।
कभी इसकी शाख पर भी बहारों का मौसम आता है।।
रिश्तों की डालियाँ टूटती हैं, स्वार्थ की आँधी में।
अपनत्व और स्नेह के नीर से रिश्तों में प्राण आता है।।
खिलता है नवजीवन प्रेम की बारिश में।
मनु की धरा पर फिर जीवन लहलहाता है।।
जिंदगी में उदासी होती है अमावस की रात सी।
पूर्णिमा के च
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