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इन संघर्षो के दिनों में तुम बहुत याद आये,
संगीत में जैसे मधुर धुन राग के बाद आये।
बहती है जब विश्व में अपार आनंद की गंगा,
तो फिर क्यों मेरे नसीब में ही विषाद आये।
कैसे ना सताये वेदना उस खुशहाल घर को,
बात चलते ही जहाँ हर बात पर विवाद आये।
कोई बचकर सिर छिपाये भी तो कहाँ छिपाये,
अगर पीछे -पीछे से चलकर खुद प्रवाद आये।
रस की तलाश में कहाँ -कहाँ नहीं भटक लिए,
हमें तो संघर्षयुक्त इस जीवन में ही स्वाद आये।
- Anubhav Mishra
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