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दुआ को तो लौटना ही था, दोस्ती थी जुनून में, और मैं था प्यार में
टूटी ख्वाहिशों ने मुस्कराना सिखा दिया, फिर दिल क्यों रहे उस पत्थर के इंतजार में।**
तन्हा सी जिंदगी में रोकना चाहता था उसे, पर कह नहीं पाया वक्त की तकरार में।
यादों में आंसू तो थे हमसफर उसके एहसास के लिए
ए खुदा,खुशी मांगता हूं मेरे नूर की , इबादत दिल से दुआ कुबूल होने के इंतज़ार में।
-हर्षित कुशवाहा
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