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यहां हम हैं जो बरसों से इक बूंद को तरस रहे हैं
मेरे हिस्से के बादल भी न जाने कहां बरस रहे हैं
मैं जिस राह गुमान से गुजरता था कभी उसके साथ
वो रास्ते आज मेरी तन्हाई पर बे-इंतिहा हँस रहे हैं
– हर्ष सक्सेना
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