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मोहब्बत में लिखी सारी चिट्ठियों को जलाना पड़ा

जमाने के डर से मोहब्बत को गवाना पड़ा ।


तेरी गलियां, तेरी मोहब्बत से मीलों दूूर चला आया हूं

थोड़ा सा पाने की खातिर खुशियों को दांव पर लगाना पड़ा


अमीर-ए-शहर को गरीब-ए-हालात से क्या लेना

हाल-ए-दिल को छुपा कर गैरों के साथ मुस्कुराना पड़ा ।


दिन तो किसी तरह काटा कई गैरजरूरी कामों में

सारी रात तेरी याद में सबसे छुपके आंसू बहाना पड़ा ।


बस इक उम्मीद की कभी तो हाल-ए-दिल पूंछे

कई रातें एक फोन के इंतजार में बिताना पड़ा ।




हर्षवर्धन तिवारी

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