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February 9, 2022
"तू जाग तेरा जीवन पावन निष्फल न धरा पर हो जाए " (कविता) शिक्षक विशेषांक

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मेरी लेखनी ,मेरी कविता
"तू जाग तेरा जीवन पावन निष्फल न धरा पर हो जाए" (कविता)
शिक्षक विशेषांक
तू जाग
तेरा जीवन पावन निष्फल न
धरा पर हो जाए!
जो पुंँज प्रकाश तेरे अंदर
आलस में घिर के
न खो जाए।
तू जाग!
तेरा जीवन पावन निष्फल न
धरा पर हो जाए।
तू सागर जितना
गहरा है,
दुनिया का तू
एक चेहरा है।
मानव की पीढ़ी
गढने का,
तेरे ही सिर पर
सेहरा है।
तू कलम उठा
और आगे बढ़
पल-पल निर्मित कर ज्ञान सृजन
चहुुँओर उजाला
हो जाए ।
तू जाग
तेरा जीवन पावन निष्फल न
धरा पर हो जाए ।
सदियों से ही
तू ज्ञान रूप का गरिमामयी उजाला है। कितने जीवन
पथ को तूने
अब तक रोशन
कर डाला है।
तूने सबको
वह ज्ञान दिया
जीवन पथ का
वह मान दिया।
तू दोहन कर ले
इस धन का
पुलकित कर दे
प्रति कण -कण को
पर तुझको इतना
ध्यान रहे
अज्ञान कहीं ना
रह जाए|
तू जाग तेरा जीवन पावन निष्फल न
धरा पर हो जाए |
हरिशंकर सिंह सारांश
"तू जाग तेरा जीवन पावन निष्फल न धरा पर हो जाए" (कविता)
शिक्षक विशेषांक
तू जाग
तेरा जीवन पावन निष्फल न
धरा पर हो जाए!
जो पुंँज प्रकाश तेरे अंदर
आलस में घिर के
न खो जाए।
तू जाग!
तेरा जीवन पावन निष्फल न
धरा पर हो जाए।
तू सागर जितना
गहरा है,
दुनिया का तू
एक चेहरा है।
मानव की पीढ़ी
गढने का,
तेरे ही सिर पर
सेहरा है।
तू कलम उठा
और आगे बढ़
पल-पल निर्मित कर ज्ञान सृजन
चहुुँओर उजाला
हो जाए ।
तू जाग
तेरा जीवन पावन निष्फल न
धरा पर हो जाए ।
सदियों से ही
तू ज्ञान रूप का गरिमामयी उजाला है। कितने जीवन
पथ को तूने
अब तक रोशन
कर डाला है।
तूने सबको
वह ज्ञान दिया
जीवन पथ का
वह मान दिया।
तू दोहन कर ले
इस धन का
पुलकित कर दे
प्रति कण -कण को
पर तुझको इतना
ध्यान रहे
अज्ञान कहीं ना
रह जाए|
तू जाग तेरा जीवन पावन निष्फल न
धरा पर हो जाए |
हरिशंकर सिंह सारांश
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