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मेरी लेखनी मेरी कविता
तेरा यह मिजाज समझ नहीं आया
(कविता)
तेरे मिलने का दस्तूर
समझ नहीं आया,
मेरा था क्या कसूर
मुझे समझ नहीं आया।।
खता मेरी थी
या गुनहगार तुम ,
मुझे तुम्हारा यह अंदाज
समझ नहीं आया ।।
झूठा था इश्क
या थी कोई मजबूरी,
तेरे यूं चले जाने का राज
समझ नहीं आया ।।
झूठी हकीकत है या
बहाने थे सच्चे
तेरा यह दोहरा मिजाज
समझ नहीं आया ।।
हरिशंकर सिंह सारांश
तेरा यह मिजाज समझ नहीं आया
(कविता)
तेरे मिलने का दस्तूर
समझ नहीं आया,
मेरा था क्या कसूर
मुझे समझ नहीं आया।।
खता मेरी थी
या गुनहगार तुम ,
मुझे तुम्हारा यह अंदाज
समझ नहीं आया ।।
झूठा था इश्क
या थी कोई मजबूरी,
तेरे यूं चले जाने का राज
समझ नहीं आया ।।
झूठी हकीकत है या
बहाने थे सच्चे
तेरा यह दोहरा मिजाज
समझ नहीं आया ।।
हरिशंकर सिंह सारांश
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