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मेरे लेखनी मेरी कविता
सीने से लगाया क्यों नहीं
(कविता)
शिकायत है तुमसे
इतनी सी बात पर,
रुठा था मैं तुमसे
मनाया क्यों नहीं।
मनाकर सीने से
लगाया क्यों नहीं।।
कहते थे करते हैं
तुमसे प्यार,
जब प्यार था तो
नखरा उठाया क्यों नहीं,
मनाकर सीने से
लगाया क्यों नहीं।।
जब पास आओगे मेरे
पूछुुँगा मैं तुमसे
हक अपना तुमने मुझ पर
जताया क्यों नहीं ।
मनाकर सीने से
लगाया क्यों नहीं।।
प्यार के इस धागे का
एक सिरा
तुम्हारे पास भी था ,
उलझा था तो तुमने
सुलझाया क्यों नहीं ,
मनाकर सीने से
लगाया क्यों नहीं।।।
हरिशंकर सिंह सारांश
सीने से लगाया क्यों नहीं
(कविता)
शिकायत है तुमसे
इतनी सी बात पर,
रुठा था मैं तुमसे
मनाया क्यों नहीं।
मनाकर सीने से
लगाया क्यों नहीं।।
कहते थे करते हैं
तुमसे प्यार,
जब प्यार था तो
नखरा उठाया क्यों नहीं,
मनाकर सीने से
लगाया क्यों नहीं।।
जब पास आओगे मेरे
पूछुुँगा मैं तुमसे
हक अपना तुमने मुझ पर
जताया क्यों नहीं ।
मनाकर सीने से
लगाया क्यों नहीं।।
प्यार के इस धागे का
एक सिरा
तुम्हारे पास भी था ,
उलझा था तो तुमने
सुलझाया क्यों नहीं ,
मनाकर सीने से
लगाया क्यों नहीं।।।
हरिशंकर सिंह सारांश
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