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मेरी लेखनी ,मेरी कविता
"सपनों कीएक व्यवस्था"
(कविता)मैं संस्था हूंँ।
मैं संस्था हूंँ,
मैं संस्था हूंँ।।
सपनों का ताना-बाना बुनने ,उन्हें पूरा करने की एक व्यवस्था हूंँ।
मैं संस्था हूंँ ,
मैं संस्था हूंँ ।।
मैं ज्ञान सभी को देती हूंँ, शिक्षा की गागर भरती हूंँ, सच का संज्ञान कराती हूंँ मेहनत करना हर पग, पग पर ,मैैं बच्चों को सिखलाती हूँ।
जीवन में आगे बढ़ने की छोटी सी एक अवस्था हूंँ
मैं संस्था हूंँ,
मैं संस्था हूंँ।।
गुजरे जीवन पथ पर
मैंने, जीवन का समरस पाया है,
शिक्षा की ताकत
क्या होती,
मैंने सबको सिखलाया है,
मैं अमर ज्ञान का भंडारण ,मैैं ज्ञान पूर्ण एक बस्ता हूंँ।
मैं संस्था हूंँ
मैं संस्था हूंँ ।।
सर्वांग विकास,
मैैं करती हूंँ,
सद्गुण, सब के मन भरती हूंँ,
सपनों को पूरा करने की छोटी सी एक व्यवस्था हूंँ।
मैं संस्था हूँ
मैैं संस्था हूंँ।।
सपनों को पूरा करने की छोटी सी एक अवस्था हूंँ।।
हरिशंकर सिंह सारांश
"सपनों कीएक व्यवस्था"
(कविता)मैं संस्था हूंँ।
मैं संस्था हूंँ,
मैं संस्था हूंँ।।
सपनों का ताना-बाना बुनने ,उन्हें पूरा करने की एक व्यवस्था हूंँ।
मैं संस्था हूंँ ,
मैं संस्था हूंँ ।।
मैं ज्ञान सभी को देती हूंँ, शिक्षा की गागर भरती हूंँ, सच का संज्ञान कराती हूंँ मेहनत करना हर पग, पग पर ,मैैं बच्चों को सिखलाती हूँ।
जीवन में आगे बढ़ने की छोटी सी एक अवस्था हूंँ
मैं संस्था हूंँ,
मैं संस्था हूंँ।।
गुजरे जीवन पथ पर
मैंने, जीवन का समरस पाया है,
शिक्षा की ताकत
क्या होती,
मैंने सबको सिखलाया है,
मैं अमर ज्ञान का भंडारण ,मैैं ज्ञान पूर्ण एक बस्ता हूंँ।
मैं संस्था हूंँ
मैं संस्था हूंँ ।।
सर्वांग विकास,
मैैं करती हूंँ,
सद्गुण, सब के मन भरती हूंँ,
सपनों को पूरा करने की छोटी सी एक व्यवस्था हूंँ।
मैं संस्था हूँ
मैैं संस्था हूंँ।।
सपनों को पूरा करने की छोटी सी एक अवस्था हूंँ।।
हरिशंकर सिंह सारांश
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