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मेरी लेखनी ,मेरी कविता
लगी हो लगन सीने में
तो फिर संताप क्या करना
अगर बेदर्द हाकिम हो
तो फिर फरियाद क्या करना ।
कभी तेरी जुदाई का हमें डर मार जाता है
निगाहों का तेरा खंजर जिगर के पास जाता है ।
हरिशंकर सिंह सारांश
लगी हो लगन सीने में
तो फिर संताप क्या करना
अगर बेदर्द हाकिम हो
तो फिर फरियाद क्या करना ।
कभी तेरी जुदाई का हमें डर मार जाता है
निगाहों का तेरा खंजर जिगर के पास जाता है ।
हरिशंकर सिंह सारांश
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