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मेरी लेखनी, मेरी कविता
"मौसम के घर का आलम बदला ही जा रहा है"
(कविता) दास्ताने मौसम
कुछ-कुछ घना है कोहरा, कुछ रात है अंधेरी, मौसम के घर हुई है,गंभीर हेरा फेरी।
सूरज के सारथी ने रथ
अपना जोता होगा, शायद सुबह से पहले ऐसा ही होता होगा।
बदल रहा है मौसम, फिजाँ बदल रही है,
जीने की आदमी की दिशा बदल रही है।
तुम साध लो समय को फिसला ही जा रहा है,
मौसम के घर का आलम बदला ही जा रहा है ।।
हरिशंकर सिंह सारांश
"मौसम के घर का आलम बदला ही जा रहा है"
(कविता) दास्ताने मौसम
कुछ-कुछ घना है कोहरा, कुछ रात है अंधेरी, मौसम के घर हुई है,गंभीर हेरा फेरी।
सूरज के सारथी ने रथ
अपना जोता होगा, शायद सुबह से पहले ऐसा ही होता होगा।
बदल रहा है मौसम, फिजाँ बदल रही है,
जीने की आदमी की दिशा बदल रही है।
तुम साध लो समय को फिसला ही जा रहा है,
मौसम के घर का आलम बदला ही जा रहा है ।।
हरिशंकर सिंह सारांश
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