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मेरी लेखनी, मेरी कविता
मन विचलित हो जाता है( कविता)
जब जब देखूंँ
दशा देश की,
मन विचलित हो जाता है।
सभी व्यथित हैं
सभी विकल हैं।
इन लोगों के बानों से,
जो कुछ करते नहीं स्वयं हैं
आलस के वह परम मित्र हैं।।
इन लोगों की हालत पर तो
सबको गुस्सा आता है।
मन विचलित हो जाता है।।
अपना कार्य सही ना करते
औरों को सिखलाते
बेकारी की आदत में
येे लोगों को भरमाते।।
ऐसे बेकारों पर मुझको
भारी गुस्साँ आता है ।
मन विचलित हो जाता है।
भगत सिंह की आस करें ये
पर दूजे के घर मे,
अपना कार्य सही ना करते
भ्रम फैलाते मन में।
ऐसे विष बीजों को बोना
नाकामी कहलाता है।
जब जब देखूंँ दशा देश की
मन विचलित हो जाता है
हरि शंकर सिंह सारांश
मन विचलित हो जाता है( कविता)
जब जब देखूंँ
दशा देश की,
मन विचलित हो जाता है।
सभी व्यथित हैं
सभी विकल हैं।
इन लोगों के बानों से,
जो कुछ करते नहीं स्वयं हैं
आलस के वह परम मित्र हैं।।
इन लोगों की हालत पर तो
सबको गुस्सा आता है।
मन विचलित हो जाता है।।
अपना कार्य सही ना करते
औरों को सिखलाते
बेकारी की आदत में
येे लोगों को भरमाते।।
ऐसे बेकारों पर मुझको
भारी गुस्साँ आता है ।
मन विचलित हो जाता है।
भगत सिंह की आस करें ये
पर दूजे के घर मे,
अपना कार्य सही ना करते
भ्रम फैलाते मन में।
ऐसे विष बीजों को बोना
नाकामी कहलाता है।
जब जब देखूंँ दशा देश की
मन विचलित हो जाता है
हरि शंकर सिंह सारांश
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